कर चोरी का जिम्मेदार कौन

अपनी वास्तविक आय छिपाकर कम कर दे रही ‘बड़ी मछलियों’ को सख्त चेतावनी देकर वित्त मंत्रालय ने बिलकुल ठीक किया है। वर्षों पहले संयुक्त मोर्चा सरकार में वित्त मंत्री की भूमिका निभाते हुए इन्हीं पी चिदंबरम ने अर्थव्यवस्था से काला धन निकालने के लिए एक योजना शुरू की थी, जिसका सुखद नतीजा दिखाई पड़ा था। इसलिए उनकी प्रतिबद्धता पर संदेह नहीं है।

जिस देश में मध्यवर्ग की आबादी निरंतर बढ़ रही है, जहां उपभोक्ता वस्तुओं की मांग और बिक्री लगातार बढ़ रही है, वहां 10 लाख या उससे अधिक की सालाना आय वाले करदाताओं की संख्या महज साढ़े चौदह लाख के आसपास होगी, इस पर कौन यकीन करेगा! इसलिए कर चोरी के खिलाफ सख्ती समझ में तो आती है।

लेकिन ‘बड़ी मछलियां’ वर्षों से अगर कर चोरी करती आ रही हैं, तो इसके पीछे सरकारी उदासीनता का भी उतना ही हाथ है! सरकार अपनी पीठ थपथपाती है कि करदाताओं की संख्या बढ़ी है। जरूर बढ़ी है, पर इनमें से अधिकांश नौकरीपेशा हैं, जिनके लिए आय छिपाना संभव नहीं है।

जबकि व्यवसायियों और स्वरोजगार से जुड़े लोगों पर वैसी चौकसी नहीं है। लिहाजा वे व्यवस्था की खामियों का लाभ उठाकर बच निकलते हैं। इसी कारण कर राजस्व में बहुत वृद्धि नहीं हो पाई है। मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष कर में प्राप्ति लक्ष्य से कम रहने की आशंका है। राजकोषीय सुदृढ़ीकरण पर विजय केलकर कमेटी का ही आकलन है कि इस साल कर संग्रह 60,000 करोड़ रुपये कम रह सकता है।

दरअसल आर्थिक सुस्ती के इस माहौल में दूसरे मोर्चों से भी सरकार को निराशा हाथ लगी है। मसलन, 2 जी की दोबारा नीलामी से सरकार ने 40,000 करोड़ रुपये पाने की उम्मीद की थी, लेकिन करीब साढ़े नौ हजार करोड़ रुपये ही हाथ आए! इसी तरह विनिवेश के जरिये 30,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य था, जबकि महज 808 करोड़ रुपये मिले।

राजस्व के मोर्चे पर इन विफलताओं ने ही सरकार को कर उगाही में सख्ती बरतने के लिए प्रेरित किया। लेकिन यह सख्ती और चौकसी निरंतर जारी रहनी चाहिए। यह नहीं चल सकता कि नौकरीपेशा तो ईमानदारी से कर चुकाएं और जो कर चुरा सकते हैं, वे चुराते रहें।

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